इन दिनों कोरोना का प्रकोप लगातार बढ़ता ही जा रही है। हालात तो ऐसे हो गए हैं कि कई जगहों पर लॉकडाउन (Lockdown in india) तक लगा दिया गया है। दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में लॉकडाउन के जरिए कोरोना के संक्रमण को रोकने की कोशिश हो रही है। कोरोना के मरीजों के संख्या इतनी तेज बढ़ रही है कि अस्पतालों में बेड कम पड़ गए हैं और ऑक्सीजन सिलेंडर (Oxygen Cylinder) की कमी पैदा हो गई है। ऐसे में बहुत सी स्टील, पेट्रोलियम और उर्वरक कंपनियां भी अपने कारोबार में इस्तेमाल होने वाले ऑक्सीजन सिलेंडर अस्पतालों को सप्लाई कर रहे हैं। ऐसे में बहुत से लोग ये नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर जो ऑक्सीजन वातावरण में भरी पड़ी है, उसके सिलेंडर की कमी कैसे हो गई है? आइए आपको बताते हैं ऑक्सीजन का पूरा इकनॉमिक्स।
ऑक्सीजन सिलेंडर |
जानिए कैसे बनती है ऑक्सीजन
ऑक्सीजन गैस क्रायोजेनिक डिस्टिलेशन प्रोसेस के जरिए बनती है। इस प्रक्रिया में हवा को फिल्टर किया जाता है, ताकि धूल-मिट्टी को हटाया जा सके। उसके बाद कई चरणों में हवा को कंप्रेस (भारी दबाव डालना) किया जाता है। उसके बाद कंप्रेस हो चुकी हवा को मॉलीक्यूलर छलनी एडजॉर्बर (adsorber) से ट्रीट किया जाता है, ताकि हवा में मौजूद पानी के कण, कार्बन डाई ऑक्साइड और हाइड्रोकार्बन को अलग किया जा सके।
इस पूरी प्रक्रिया से गुजरने के बाद कंप्रेस हो चुकी हवा डिस्टिलेशन कॉलम में जाती है, जहां इसे ठंडा किया जाता है। यह प्रक्रिया एक plate fin heat exchanger & expansion turbine के जरिए होती है। ऑक्सीजन को -185 डिग्री सेंटीग्रेट (ऑक्सीजन का उबलने का स्तर) तक ठंडा किया जाता है, जिससे उसे डिस्टिल्ड किया जाता है। बता दें कि डिस्टिल्ड की प्रक्रिया में पानी या तरल को उबाला जाता है और उसकी भाप को कंडेंस कर के जमा कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया को अलग-अलग स्टेज में कई बार किया जाता है, जिससे नाइट्रोजन, ऑक्सीजन और अर्गन जैसी गैसें अलग-अलग हो जाती हैं। इसी प्रक्रिया के बाद लिक्विड ऑक्सीजन और गैस ऑक्सीजन मिलती है।